चरणाट बैठक परिचय

चरणाटधाम स्थित श्री महाप्रभुजी श्रीगुसाईंजी के बैठक का मुख्य द्वार व नगाड़खाना

चरणाट बैठक परिचय

पुष्टिमार्ग का गौरव-स्थल चरणाटधाम

पुष्टि मार्ग के प्रवर्तक तथा प्राचीन भारतीय सनातन संस्कृति के उन्नायक जगद्गुरु श्रीमद्धल्लभाचार्यजी ने वेद-पुराण-भागवत-गीता-उपनिषद आदि का काशी में अध्ययन करने के उपरान्त, भक्तिमार्ग के द्वारा जीव मात्र का कल्याण करने तथा भारतीय सनातन संस्कृति का सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से तीन बार सम्पूर्ण देश की परिक्रमा की। प्रथम परिक्रमा महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी ने लगभग 13 वर्ष की अवस्था में शुरू की। प्रथम यात्रा में लगभग 9 वर्ष लगे, दूसरी यात्रा में लगभग 5 वर्ष लगे तथा तीसरी यात्रा में 4 वर्ष लगे।

महाप्रभु श्री वल्लभाचार्यजी के साथ देश परिक्रमा में श्रीशालिग्रामजी और श्रीमुकुन्दरायजी एवं श्रीभागवतजी विराजते थे। महाप्रभु के परम शिष्य श्रीदामोदरदासजी श्रीभागवतजी को पधराकर पद यात्रा में साथ रहते थे। भगवद् कृपा से श्रीमुकुन्दरायजी (षष्ठ निधि के ठाकुरजी) काशी स्थित विख्यात श्रीगोपाल मन्दिर में विराजमान हैं।

महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी ने प्रत्येक परिक्रमा के समय जिन-जिन स्थानों पर श्री भागवतजी का पारायण किया था, वहाँ पर आपश्री की बैठकजी स्थापित हुई। आपश्री ने पदयात्रा के दौरान अनेक पवित्र नदियाँ, सरोवर, संत महात्माओ के आश्रम, राम-कृष्ण -शिव के जीवन से सम्बन्धित स्थल, पौराणिक स्थान, प्रसिद्ध नगर आदि का दर्शन किया। आपश्री ने परिक्रमा सर्वप्रथम काशी से ही शुरू की। आपश्री ने परिक्रमा के द्वारा देश के विभिन्न भागों की यात्रा की तथा भक्तिमार्ग के जन सन्देष के द्वारा जीवों के कल्याण का मार्ग मानव जगत को सहजता से दिखलाया। आपश्री की सम्पूर्ण भारत वर्ष के विभिन्न स्थानों पर श्रीबैठकजी स्थापित हुई, जिनकी संख्या चौरासी बतलायी जाती है। अन्तिम बैठक चरणाटधाम में स्थित हुई। चौरासी बैठकजी आज भी देश की एकता व अखण्डता बनाये हुए है।

महाप्रभु श्री वल्लभाचार्यजी अन्तिम परिक्रमा करते हुए वि0सं0 1572 में काशी के समीप चरणाद्रि (चुनार) नामक स्थान पर पधारे। यह स्थान विंध्य की ऊँची पर्वत माला के मध्य स्थित है तथा यहाँ के पर्वत का आकार चरण की तरह है इसलिए इस स्थान का नाम चरणाद्रि पड़ा। इसी पावन स्थल पर पुष्टिमार्ग के उन्नायक श्री मत्प्रभुचरण गुसाईं श्रीविट्ठलनाथजी का प्राकट्य मिति पौष कृष्ण 9 वि0सं0 1572 में हुआ।

गुसांईं श्रीविट्ठलनाथजी हिन्दी-संस्कृत-ब्रजभाषा और न्यायशास्त्र  के प्रकाण्ड विद्वान आचार्य थे। आपश्री ने भारतीय सनातन धर्म एवं पुष्टिमार्ग का व्यापक प्रचार-प्रसार करते हुए, पुष्टिमार्ग में संगीत-साहित्य एवं विविध कलाओ का समावेष किया। आपश्री ने अपने पिताश्री द्वारा स्थापित पुष्टिमार्ग का विषद विस्तार करते हुए, उसे आध्यात्मिक वैभव प्रदान किया तथा कृष्ण भक्ति की अष्टयाम सेवा के माध्यम से साहित्य-संगीत और कला का नवोत्थान किया।

गुसंाईं श्रीविट्ठलनाथजी ने हिन्दी साहित्य के आठ कवियों को लेकर अष्टछाप की स्थापना की तथा अष्ट छाप के माध्यम से ही श्रीकृष्ण भक्ति के लाखों पदों की रचना हुई। महाकवि भक्त सूरदासजी अष्टछाप के प्रधान कवि थे। श्री सूरदासजी ने अपनी काव्य-रचना के द्वारा विश्व हिन्दी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया। सूरदासजी द्वारा वात्सल्य भाव से की गई रचना, विश्व काव्य साहित्य में सूर्य के समान चमक बनाये हुए है।

महाप्रभुजी की अन्तिम बैठक तथा श्रीगुसांईंजी का प्राकट्य स्थल चरणाटधाम का महत्व सम्पूर्ण वैष्णव समाज में बहुत अधिक है। इस बैठक की विशेषता है कि श्री गुसांईंजी महाप्रभु की गोद में विराजते हैं। यहाँ पर स्थित बैठकजी प्राकृतिक हरियाली से परिपूर्ण है तथा श्री बैठकजी के सम्मुख ऐतिहासिक कमल सरोवर अपनी भव्यता के लिए काफी विख्यात है। श्रीबैठकजी के पीछे सुन्दर निकुंज (बगीचा) एवं विशाल सरोवर स्थित है, जो वल्लभ सागर के नाम से जाना जाता है। बैठकजी का ऐतिहासिक भवन वास्तुकला की अनुपम देन है। बैठकजी में स्थित ‘आचार्य कूप’ वैष्णवजन एवं आसपास की ग्रामीण जनता के लिए आकर्षण का केन्द्र है। इस कूप की ऐसी मान्यता है कि इसका दर्शन करने मात्र से व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। कुछ दिन तक इसके जल का नियमित पान करने से उत्तम स्वास्थ्य की भी प्राप्ति होती है, ऐसा लोगोका व्यक्तिगत अनुभव है।

षष्ठपीठाधीश्वर  नित्यलीलास्थ गोस्वामी 108 श्रीमुरलीधरलालजी महाराज जो काशी स्थित विख्यात श्री गोपाल मन्दिर में विराजमान थे, उनका भी चरणाटधाम स्थित श्रीमहाप्रभुजी के बैठकजी से विशेष लगाव व स्नेह था। आपश्री बराबर चरणाटधाम पधारते थे और श्री गुसांईंजी के प्राकट्य उत्सव पर तीन-चार दिन तक बराबर सेवा का आनन्द लेते थे और अपने वचनामृत द्वारा वैष्णवजन में प्रभु सेवा की भावना को पुष्ट करते थे। आपश्री सदैव वैष्णवजन को चरणाटधाम की बैठक जी का महत्व बतलाते थे।

नि0लि0 गोस्वामी श्रीमुरलीधरलालजी महाराज की इच्छा थी कि चरणाटधाम का सुन्दर ढंग से विकास एवं जीर्णोद्धार  हो । जिससे यहाँ आने वाले गोस्वामी बालको एवं वैष्णवजन को किसी प्रकार की असुविधा न हो तथा उन्हें सेवा का आनन्द प्राप्त हो । आपश्री के जीवनकाल में ही चरणाटधाम के जीर्णोद्धार  सेवा का कार्य प्रारम्भ हुआ था। आपश्री के नित्य लीला में पधारने के पश्चात  आपश्री की गद्दी पर जामनगर के गोस्वामी 108 श्रीश्याममनोहरजी महाराज का तिलक हुआ। गोस्वामी श्रीश्याममनोहरजी महाराज श्री गोपाल मन्दिर के अन्तर्गत आने वाली अड़ैल एवं चरणाट की बैठकजी की भी देखरेख करने लगे। गोस्वामी श्रीश्याममनोहरजी महाराज के मार्ग निर्देशन में पुष्टिमार्ग के उन्नायक गुसांईंजी श्रीविट्ठलनाथजी का प्राकट्य महो त्सव का आयोजन चरणाटधाम में हुआ। इस अवसर पर आयोजित वैष्णव सम्मेलन में श्रीवल्लभदर्शन के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए, सम्प्रदाय के प्रमुख स्थलों के जीर्णोद्धार  के लिए तथा वैष्णवजन को संघटित करने एवं उनमें वैष्णवता के संस्कारों का सिंचन करने के उद्देष्य से वि0सं0 2050 मिति पौष बदी 10 को एक संस्था की स्थापना का संकल्प हजारों वैष्णवजन की उपस्थिति में पूज्यपाद महाराजश्री ने हर्षर्ध्वनि के मध्य लिया।

काशी के वैष्णवजन में चरणाट धाम के जीर्णोद्धार कार्य के प्रति विशेष उत्साह है।

काशी के वैष्णवजन के उत्साह के कारण ही विगत 4-5 वर्षों से श्री गुसांईंजी का भव्य प्राकट्य महोत्सव अखिल भारतीय स्तर पर श्री मुकुन्द गोपाल सेवा संस्थान द्वारा चरणाट धाम में षष्ठपीठाधीश्वर  गोस्वामी श्री श्याममनोहरजी महाराज की अध्यक्षता में विशाल रूप से मनाया जाता है। प्राकट्य उत्सव में दूर-दूर से गोस्वामी बालक एवं वैष्णवजन भाग लेने हेतु चरणाट धाम पधारते हैं।

 

चरणाट धाम स्थित बैठकजी का सिंहपौर एवं ढोलीपटिया ।

चरणाट धाम स्थित श्रीमहाप्रभुजी श्रीगुसांईजी के निज बैठक का द्वार

चरणाट धाम स्थित श्रीगिरिधरजी महाराज सत्संग कक्ष