श्रीगोपालमंदिर (श्रीजीवनजी की हवेली)
तीन लोक से न्यारी एवं तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की तीर्थस्थली काशी में ठाकुर श्रीगोपाल लालजी वि0सं0 1787 में एवं षष्ठनिधि ठाकुर श्रीमुकुन्दरायजी वि0सं0 1885 में पधारे। केशवपुरी, काशी के आराध्यस्वरूप श्रीमुकुन्दरायजी का भारत प्रसिद्ध मन्दिर, षष्ठपीठ गोपाल मंदिर के नाम से ही विख्यात है। यह मन्दिर भारत के पुष्टिमार्गीय वैष्णवों का प्रमुख आध्यात्मिक आकर्षण एवं आराधना का स्थल है। यहाँ से निरन्तर धार्मिक, साहित्यिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक अनुष्ठान परिचालित होते रहते हैं। मंदिर नव-कूपी तीर्थ परिसर में स्थित है, जिसमें अत्यंत पवित्र नौ कूप मौजूद हैं। मंदिर परिसर में गो0 तुलसीदासजी की गुफा है जिसमें गो0 तुलसीदासजी ने सोलहवीं शताब्दी में ‘‘विनयपत्रिका“ ग्रन्थ की रचना की थी। उनके सहोदर भ्राता अष्टछाप के महान् कवि श्रीनन्ददासजी का भी समीप में स्थान है जहाँ पर विराजकर महान् रसमय ग्रन्थ ‘‘भ्रमरगीत“ की उन्होने रचना की थी। परिसर में कमल तलैया एवं श्रीमुरलीधरलालजी द्वारा स्थापित शिलाओ पर उत्कीर्ण ‘‘व्रज चौरासी कोस“ का प्रतिरूप एक बारादरी में विराजमान है जिसकी पूजा परिक्रमा वैष्णवजन करते हैं। इसी परिसर में शीषमहल भी स्थित है। मन्दिर की एक निज गौशाला भी है जिसमें गायों की सेवा भावपूर्वक की जाती है। मन्दिर परिसर में मुख्य द्वार के समीप ही काशी खंड में वर्णित श्री बटुक भैरवजी का मंदिर है जो श्रीमुकुन्दगोपाल भगवान् के सजग प्रहरी के रूप में स्थित हैं। इनकी पूजा अर्चना की व्यवस्था मंदिर द्वारा ही होती है। श्रीगोपाल मंदिर प्रांगण में स्थित गोवर्धनचौक में एक विशाल सभागार भी है।
अखण्ड भूमण्डलाचार्य जगद्गुरु महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी ने जिनकी कर्मभूमि काशी रही है, आज से पांच शताब्दी पूर्व शुद्धाद्वैत ब्रह्मवाद दर्शन का स्थापन एवं प्रवर्तन कर काशीपुरी को केशवपुरी बना दिया है एवं उन्हीं का अनुसरण करते हुए नि0ली0ष0पी0धी0 शुद्धाद्वैत मार्तंड श्रीगिरिधरजी महाराज ने काशी में शुद्धाद्वैत ब्रह्मवाद की पताका को लहराया।
षष्ठपीठ की इस परम पावन स्थली के लिए यह बड़े ही गौरव का विषय है कि श्रीमुकुन्दगोपाल प्रभु की यह लीला स्थली अत्यन्त प्राचीन स्थलों से परिवेष्टित है। मन्दिर का सिंहपौर बड़ा ही आकर्षक है।। मन्दिर के पृष्ठ भाग में बड़ा ही रमणीक एवं विशाल बगीचा स्थित है। जिसमें किसी समय शुद्धाद्वैत मार्तण्ड श्रीगिरिधरजी महाराज की माताश्री अपने सेव्य स्वरूप श्रीगोपाल लालजी को लाड़ लड़ाया करती थीं एवं एक सुन्दर गाड़ी में श्रीगोपाल लालजी को घुमाया करती थीं। बगीचे के दक्षिण की और बड़ा ही भव्य शीषमहल है जिसमें बड़े दुर्लभ शीशे झाड़-फानूस इत्यादि स्थित है। बगीचे के उत्तर-पूर्व कोने में कमल तलैया स्थित है एवं उत्तर-पश्चिम की और श्रीमुरलीधरलालजी द्वारा स्थापित शिलाओ पर उत्कीर्ण ब्रज 84 कोस का प्रतिरूप एक बारादरी में स्थापित है जिसकी वैष्णवजन नित्य नियमपूर्वक परिक्रमा किया करते हैं एवं श्रीगिरिराजजी तथा सभी ब्रज के स्थलों के पूजन का सौभाग्य भी प्राप्त करते हैं। बगीचे के उत्तर पूर्व के कोने में एक अत्यन्त प्राचीन विष्णु स्वरूप (चतुर्भुज मूर्ति) स्थापित है। मन्दिर के उत्तर पूर्व अन्तिम सीमा में ही एक मन्दिर श्रीबटुकभैरव की मूर्ति स्थापित है जो काशीखण्ड में वर्णित है। बटुक भैरव की सेवा-पूजा की व्यवस्था मन्दिर की और से ही होती है। मन्दिर के दक्षिण पूर्व में एक गौशाला का नवीन भवन श्रीश्याममनोहरजी महाराज के समय में निर्मित हुआ है जिसमें गायों की सेवा बड़े सुचारु व सुन्दर रूप से होती है। सिंहपौर के दक्षिण पश्चिम की और श्रीगोपाल लालजी का सर्वप्रथम स्थापित मन्दिर स्थित है जिसमें श्रीगोपाल लालजी की सेवा होती थी। बाद में श्रीमुकुन्दरायजी के काशी पधारने पर प्राचीन मन्दिर के उत्तर की और नवीन मन्दिर निर्मित हुआ जिसमें श्रीमुकुन्दराय जी पधारे, बहुत वर्षों तक श्रीगोपाल लालजी एवं श्रीमुकुन्दरायजी की सेवा अलग-अलग चलती रही। कालान्तर में श्रीमुरलीधरलालजी महाराज के समय में आज से लगभग 40 वर्ष पूर्व श्रीमुकुन्दरायजी के चौक में ही श्रीगोपाल लालजी श्रीमुकुन्दप्रभु के निज मन्दिर में उनके दाहिनी और विराजे जहाँ पर आज तक दोनों स्वरूपों की सेवा हो रही है। श्रीगोपाल लालजी का चौक बड़ा होने से बड़े-बड़े उत्सवों एवं मनोरथो के आयोजन उसी चौक में होते हैं। श्रीमुकुन्दरायजी के मन्दिर के आगे के चौक में स्थित हाथी पोल पर दो विशाल हाथी बने हैं जिनकी शोभा दर्शनीय है। उसी चौक में तुलसी क्यारी भी स्थित है जिसके पूर्व भाग में श्रीगोवर्धननाथजी का मन्दिर एवं श्रीजीवनजी श्रीगिरिधरजी की गादी एवं श्रीमुरलीधरजी महाराज की चरणपादुका की सेवा भी होती है, उसी कक्ष में वर्तमान में श्रीगोकुलनाथजी की वस्त्र सेवा एवं चरणपादुका भी विराजते हैं।
षष्ठपीठ की व्यवस्था के अन्तर्गत श्रीमद्धल्लभाचार्य की चौरासी बैठको में दो अत्यन्त महत्वपूर्ण बैठक श्री अड़ैल की बैठक एवं चुनार की बैठक है। यह बड़े गौरव का विषय है कि श्रीआचार्यचरण के दोनों बालको का श्रीगोपानाथजी एवं श्रीगुसांईंजी का प्रागट्य भी क्रमशः श्रीअड़ैल एवं चुनार की बैठक में ही हुआ था। श्रीगुसाईंजी के पुत्रोंमें श्रीघनश्यामजी के अतिरिक्त समस्त बालको का प्रागट्य श्रीअड़ैल की बैठक में ही हुआ था। श्रीमदाचार्यचरण ने भी अपने गृहस्थ आश्रम का अधिकांश समय अड़ैल में ही व्यतीत किया था। पुष्टिमार्ग की महान् निधि श्रीनवनीतप्रियाजी भी बहुत वर्षों तक अड़ैल में विराजे थे। अड़ैल व चुनार की बैठको के अतिरिक्त नाथद्वारा में श्रीजी के मन्दिर परिसर में ही प्रीतमपोली श्रीमुकुन्दरायजी का मन्दिर स्थित है। जहाँ पर कुछ समय तक काशी के गृह को प्राप्त होने के बाद श्रीमुकुन्दरायजी विराजे थे। जतीपुरा में श्रीगिरिराज की तलहटी में ही मन्दिर का एक बहुत विशाल भूखण्ड स्थित है जिसमें स्थित श्रीयदुनाथजी की बैठक का जीर्णोद्धार सत्संग कक्ष एवं अतिथि भवन के निर्माण की योजना बन चुकी है।
कार्यालय
बगीचा
शीश महल
तुलसी दास जी (विनय पत्रिका)
नन्द दास जी (भ्रमरगीत)
गोपालमन्दिर में संपन्न उत्सव श्यामा बेटीजी कृत
षष्ठपीठ गोपाल मदिंर में होने वाले प्रायोजित उत्सव
मुख्यतया अखण्ड भूमण्डलाचार्य जगदगुरू महाप्रभु श्री वल्लभाचार्यजी का त्रिदिवसीय प्राकट्य महोत्सव ये हर साल बडे उत्साह से आनन्दपूर्वक मदिर के प्रांगण में मनाया जाता है इन 3 दिनो के मुख्यतः कार्यक्रम
वैशाख कृ.10
मंगला दर्शन के समय पुष्टिध्वजारोहण एवं भक्ति का डंका भारत में बजवाया श्रीमहाप्रभुजी ने इस गीत का गान, (तत्पश्चात ) श्री सुदर्शन जी के दुग्धाभिशेक । सायं 7 बजे से विविध सास्कृतिक कार्यक्रम एवं पूज्य महाराज श्री के वचनामृत होते है ।
मि0 वैशाख कृ0 11
अपराहं 3 बजे श्रीमहाप्रभुजी की शोभायात्रा श्रीगोपाल मन्दिर के प्रांगण से निकल कर श्रीगोपाल मन्दिर मे वापस आने पर सभा के रूप में वापस में परिवर्तित हो जाती है जिसमें श्रीमहाप्रभुजी के छवि का पंचोपचार विधी से पूजन बधाई गान विद्वानो के प्रवचन एवं पू0 महाराजश्री के आशीर्वचन होते है । सांय शयन में श्रीमुकुन्द प्रभु एवं श्रीगोपाल प्रभु के मनोरथ के दर्शन होते है ।
मि0 वैशाख कृ0 12
प्रातः 9 बजे से निशुल्क मेडिकल कैम्प श्रीवल्लभ युवक परिषद वाराणसी के सौजन्य से होता है । एवं सायं: 7 बजे संगीत – संध्या से उत्सव का समापन होता है ।
मि0 चैत्र शु0 13
नि0 ली0 गो0 श्रीमुरलीधरलालजी महाराजश्री के प्राकट्य दिवस पर प्रातः 7 बजे षष्ठनिधि श्रीमुकुन्दरायजी एवं श्रीगोपाललालजी के मंगला दर्शन के पूर्व नि0 ली0 पूज्य महाराजश्री की शोभायात्रा एवं श्रीगिरिराजजी का दुग्धाभिषेक (श्रीवल्लभ युवक परिषद के सौजन्य से) होते है । मंगला के दर्शन के समय पूज्य श्रीश्याममनोहरजी महाराजश्री का केसर स्नान । मध्याहं 12 बजे नि0 ली0 पू0 महाराजश्री के पादुकाजी का केसर स्नान राजभोग मे पालना के दर्शन । सायंकाल संध्या आरती के दर्शन के पश्चात् बधाई संकीर्तन विद्वानांs के प्रवचन संस्थान कें स्थापना दिवस पर संस्था के उद्देश्यों एवं सेवाकार्यों पर प्रकाश तथा पूज्यवाद महाराजश्री का आर्शीवचन होते है ।
पुष्टिध्वजारोहण
शोभायात्रा
कलश
पंचोपचार पूजन
प्रवचन
सर्वोत्तमजी के पाठ करते वैष्णवजन