षष्ठपीठ पर विराजमान अन्य आचार्यों का परिचय

1 श्रीजीवनलालजी महाराज

 

षष्ठपीठ काशी के आचार्य श्रीजीवनलालजी महाराज का प्रागट्य मि0 ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा सं0 1923 को काशी में हुआ था। आपश्री ने श्रीपुरुषोत्तमजी ख्यालवाले से दीक्षा प्राप्त की थी। आपके समय में भी गोपाल मन्दिर पुष्टिमार्गीय वैष्णवों का प्रमुख आध्यात्मिक आकर्षण का केन्द्र बना रहा। आपका स्वरूप इतना आकर्षक एवं प्रभावशाली था कि जो भी व्यक्ति आपके सम्पर्क में आता था, आपके दर्शन मात्र से ही प्रभावित होकर विनयावनत हो जाता था।

श्रीजीवनलालजी महाराज के समय में काशीराज श्रीईष्वरीप्रसादनारायण सिंह के साथ इतना प्रगाढ़ सम्बन्ध स्थापित हो गया था कि श्रीईष्वरीप्रसादनारायणसिंह जी स्वयं गोपाल मन्दिर पधारते थे जिसमें से एक अवसर का चित्र महाराजश्री के व्यक्तिगत संग्रह में उपलब्ध है। आपश्री का लीला प्रवेश वि0सं0 1960 की वैसाख कृष्ण एकादशी को हुआ। आपको चार लालजी (1) श्रीगिरिधरलालजी (जन्म मि0 माघ शुक्ल पूर्णिमा सं0 1953) (2) श्रीराजीवलोचनजी (जन्म मि0 चैत्र शुक्ल द्वादशी सं0 1954) में (3) श्रीलालजी (जन्म सं0 1956) (4) श्रीमुरलीधरलालजी (श्रीत्रिलोकीभूषणजी) (जन्म मि0 चैत्र शुक्ल त्रयोदशी सं0 1961) प्रगट हुए तथा दो बेटियाँ श्रीश्यामप्रिया बेटीजी तथा श्रीचन्द्रप्रिया बेटीजी हुईं। आपके द्वितीय एवं तृतीय बालक अत्यन्त अल्प आयु में लीला प्रवेश किये।

2 प्रथम श्रीगिरिधरलालजी महाराज

 

प्रथम श्रीगिरिधरलालजी महाराज बड़े ही प्रतापी एवं रसिक थे। आपश्री यद्यपि बहुत कम समय तक भूतल पर विराजे लेकिन आपने अपनी विद्धता, व्यवहार कुषलता एवं मृदुभाशिता से काशी के समस्त वैष्णव समाज को अपनी और आकृष्ट  कर लिया था। श्रीगिरिधरलालजी महाराज के समय से ही श्रीवल्लभजयन्ती का आयोजन हुआ करता था। आपश्री का लीला प्रवेश मिती ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया वि0 सं0 1984 को लगभग हुआ। आपश्री की बहूजी महाराज काफी समय तक विराजीं। पूज्य महाराजश्री के लीला प्रवेश के कुछ वर्षों पूर्व ही आपश्री ने नित्य लीला में प्रवेश किया और उल्लेखनीय है कि उनका संस्कार पूज्य महाराजश्री के करकमलों द्वारा ही काशी मणिकर्णिका क्षेत्र में हुआ था। श्रीगिरिधरलालजी महाराज को दो बालक हुए लेकिन दोनों बालक अत्यन्त अल्पवय में ही लीला में पधारे।

3 श्रीमुरलीधरलालजी महाराज

 

श्रीजीवनलालजी महाराज के चतुर्थ बालक श्रीमुरलीधरलालजी महाराज का प्रागट्य मि0 चैत्र शुक्ल त्रयोदशी सं0 1961 को हुआ और लीला प्रवेश सं0 2039 भाद्रपद कृष्ण एकादशी को हुआ। आपश्री ने 78 वर्ष की अवस्था तक षष्ठपीठ काशी के आचार्य के रूप में षष्ठपीठ की पुष्टिमार्गीय सेवा परम्परा सिद्धान्तों एवं सेवा प्रणालिका के साथ ही साथ इस पीठ की समस्त गतिविधियों का कुशलतापूर्वक संचालन किया।

श्रीमुरलीधरलालजी महाराज ने बाल्यकाल से ही अद्भुत प्रतिभा से समस्त पुष्टिमार्ग के ग्रंथों, संस्कृत के अन्यान्य ग्रंथों, कीर्तन आदि की अल्प समय में ही शिक्षा प्राप्त कर अत्यन्त दक्षता प्राप्त कर ली थी। यथासमय आपका यज्ञोपवीत सम्पन्न हुआ, तत्पश्चात  वि0सं0 1978 के लगभग कामवन के पंचम पीठाधीष्वर श्रीदेवकीनन्दनाचार्यजी महाराज की दौहित्री श्रीकुसुमसुन्दरीजी से आपका विवाह सम्पन्न हुआ जो विवाह के पश्चात् श्रीप्रेमप्रियाबहूजी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। वे ललित कलाओ में सम्प्रदाय की सेवा प्रणाली एवं तत्सम्बन्धी अनेकों प्रकार की रचनाओं में अत्यन्त दक्ष थीं। उनके हाथ से बनी पिछवाई, वस्त्र एवं आभरण इत्यादि आज तक श्रीमुकुन्दरायजी, श्रीगोपाल लालजी की सेवा में अंगीकार हो रहे हैं।

वि0सं0 1985 में काशी में बहुत बड़ा ब्राह्मण महासम्मेलन हुआ। जिसमें श्रीशंकराचार्य, श्रीरामानुजाचार्य, नाथद्वारा एवं काँकरोली एवं मथुरा के गोस्वामी बालको तथा सम्पूर्ण देश के विद्वानोंने भाग लिया। उस सम्मेलन में आपने संस्कृत में अपने ओजस्वी वक्तव्य द्वारा विद्वानों को चमत्कृत कर दिया था। काशी की समस्त धार्मिक, सांस्कृतिक गतिविधियों में आपश्री प्रायः पधारते रहते थे एवं अपने सदुपदेश से जन-जन को रसप्लावित करते रहते थे। आज से 41 वर्ष पूर्व काशी की पुष्टिमार्गीय सभा के द्वारा 15 अगस्त सन् 1957 को मोतीझील में विशाल पंडित सम्मेलन का आयोजन हुआ था जिसमें आपश्री ने अपनी विद्धतापूर्ण, सरस एवं सारगर्भित प्रवचन से वहाँ पर उपस्थित समस्त विद्धत्जनों एवं उपस्थित समस्त लोगोको मुग्ध कर दिया था।

वि0सं0 2023 श्रावण शुक्ल नवमी को श्रीनाथद्वारा में सात स्वरूपोत्सव छप्पन भोग का महान् आयोजन सम्पन्न हुआ। तत्कालीन श्रीनाथद्वारा के तिलकायत श्रीगोविन्दलालजी महाराज का निमंत्रण प्राप्त होने पर तथा षष्ठगृह काशी को जो श्रीनाथद्वारा से षष्ठपीठ का अधिकार प्राप्त है तद्नुसार श्रीमुरलीधरलालजी महाराज ने षष्ठनिधि स्वरूप श्रीमुकुन्दरायजी को बड़े धूमधाम से असंख्य वैष्णवों के साथ श्रीनाथद्वारा उपर्युक्त अवसर पर पधराया।

श्रीमुकुन्दरायजी के काशी पधारने के बाद पुनः श्रीजी द्वारा पधारने का यह द्वितीय अवसर था। इसके पूर्व श्रीगिरिधरजी महाराज ने ही वि0सं0 1896 में षष्ठनिधि श्रीमुकुन्दरायजी को श्रीनाथद्वारा पधराकर चार स्वरूप का मनोरथ किया था। यह प्रथम अवसर था।

आपश्री ने अपने जीवनकाल में अनेकानेक संस्थाओं की स्थापना वैष्णवजनों को प्रेरित करके किया। वि0सं0 2017 में आपने वैष्णव समाज के द्वारा साम्प्रदायिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए श्रीमद्धल्लभसिद्धान्त सेवा संस्थान की स्थापना किया। संस्था द्वारा श्रीगोपाल मन्दिर के सामने स्थित प्राचीन हवेली जो श्रीरणछोड़जी के मन्दिर के नाम से विख्यात थी, क्रय करके उसी में कार्य प्रारम्भ कराया गया।

श्रीकृष्णप्रिया बेटीजी ने युवावस्था में ही वि0सं0 2015 सन् 1958 में लीला विस्तार किया। आपश्री के जीवनकाल में ही पूज्य महाराजश्री की द्वितीय पुत्री श्रीशरद वल्लभा बेटीजी आपकी समस्त गतिविधियों में उनकी सहयोगी थी श्रीशरद वल्लभा बेटीजी का जन्म मि0 आश्विन शुक्ल पूर्णिमा वि0सं0 1989 (शरदपूर्णिमा) को हुआ। वह अपनी बड़ी बहन की सुयोग्यउत्तराधिकारिणी थीं। उन्होने शुद्धाद्वैत जप-यज्ञ समिति के कार्यों एवं ठाकुर श्रीमदनमोहनलालजी की सेवा प्रणालिका में बहुत कुछ विस्तार किया एवं अपनी अद्भुत प्रतिभा से वैष्णव समाज एवं महिला समाज की अतुलनीय सेवा किया।

लगभग चालीस वर्षों से श्रीशरद वल्लभा बेटीजी श्रीशुद्धाद्वैत जप-यज्ञ समिति के समस्त कार्यों एवं ठाकुर श्रीमदनमोहनलालजी की सेवा का निर्वाह अत्यन्त मनोयोगपूर्वक करती रहीं। भगवत् लीलावष सन 1982 में भाद्रपद कृष्ण एकादशी को षष्ठपीठाधीश्वर  गो0 108 श्रीमुरलीधरलालजी महाराज के लीला प्रवेश के पश्चात् षष्ठपीठ श्रीगोपाल मन्दिर की सम्पूर्ण जिम्मेदारी श्रीप्रेमप्रिया बहूजी महाराज के ऊपर आ गयी। आपश्री ने गो0 श्रीशरद वल्लभा बेटीजी को इस उत्तरदायित्व को वहन करने की आज्ञा दी तब आपने बड़े ही धैर्य एवं कुषलता का परिचय देते हुए अपनी जिम्मेदारी का अद्भुत रूप से निर्वाह किया।

गो0 श्रीप्रेमप्रिया बहूजी महाराज के जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि रही कि आपने सम्वत् 2041 को कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को लगभग 113 वर्षों के अन्तराल के पश्चात् श्रीमुकुन्दरायजी एवं श्रीगोपाल लालजी के सम्मुख छप्पनभोग का आयोजन बड़े ही वृहत् रूप में किया। लगभग दस दिनों तक बहुत बड़े-बड़े मनोरथो का आयोजन हुआ।

5 षष्ठपीठाधीश्वर गो0 श्रीश्याममनोहरजी महाराज

 

आपश्री का प्राकट्य मार्ग शु0 2 वि0सं0 2013 को चापासेनी ग्राम (जनपद जोधपुर) में हुआ। आपके पिताश्री का नाम गो0 श्रीब्रजभूषणलालजी महाराज एवं माताश्री का नाम गो0 ब्रजलताजी है। पाँच वर्ष की अवस्था में सुसंस्कारिता अपनाने के साथ ही विद्यारम्भ हुआ। आपके परमपूज्य गुरुदेव, श्रीगोपाल दास गज्जा थे जिन्होंने संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी में एम.ए., एल.एल.बी., साहित्यरत्न, गीता विषारद आदि की उपाधियां प्राप्त की थीं। उनके मार्गदर्शन में आपश्री ने धर्मशास्त्र, इतिहास, संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी का अध्ययन किया एवं पुराणाचार्य तक की उपाधि काशी स्थित सं0सं0वि0वि0 से प्राप्त किया। व्याकरण का अध्ययन पं0 हरिभाई शास्त्री एवं श्रीनारायण मिश्र से किया। आपश्री के अग्रज भ्राता गो0 श्रीहरिराय महाकवि से आपने वल्लभ वेदान्त, न्याय, साहित्य का अध्ययन किया एवं वल्लभवेदान्ताचार्य की उपाधि प्राप्त की। आपश्री के पिता गो0 श्रीब्रजभूषणलालजी श्रीमद्भागवत के प्रकाण्ड विद्वान थे, अतः श्रीमद्भागवत की शिक्षा अपने पिताश्री से ही प्राप्त की। मृदंग वादन की शिक्षा आपश्री ने चापासेनी के मृगराज (सूरदासजी) से एवं तबला वादन की शिक्षा श्रीनितई चक्रवर्ती, जोधपुर से प्राप्त किया। आप प्रवृत्ति में रहते हुए भी अनवरत स्वाध्याय एवं चिंतन में मग्न रहते हैं। प्रकृति स्नेह, संगीत व कला के प्रति प्रेम आपश्री का विशेष गुण है। आपश्री द्वारा रचित निम्नलिखित रचनाओं से आपश्री की विद्धता का बोध होता है- भाषालक्षण ग्रन्थ की भक्ति भूषिणी टीका, संज्ञा विमर्शः, वृहद दानलीला भाष्य टीका, पुराणों में कुण्डलिनी साधना, गोवर्धनपूजन चलेरी कन्हाई, पुष्टिभक्ति की विशेषता तीन लोक से मथुरा न्यारी एवं अणुभाष्य उपोद्घात इत्यादि। आपश्री के बहुजी अ.सौ. श्रीराधिका बहुजी अत्यन्त मिलनसार, सेवापरायण एवं सामग्री, संगीत और अनेक कलाओ में अत्यन्त निष्णात् प्रवीण हैं।

आपश्री के एक लालजी श्रीप्रियेन्दु बावा और एक बेटी जी श्री रूपमंजरी जी हैं।

नि0ली0गो0 श्रीमुरलीधरलालजी महाराजश्री के संकल्पानुसार श्रीमुरलीधरलालजी की द्वितीय पुत्री गो0 श्रीशरद वल्लभा बेटीजी के प्रयास से मि0 माघ शुक्ल 4 सं0 2048 तदनुसार 8 फरवरी 1992 को श्रीमुकुन्दरायजी के पाटोत्सव के शुभ अवसर पर श्रीगिरिधरजी महाराज की गादीजी एवं श्रीमुरलीधरलालजी महाराज की पादुका के सम्मुख तिलक करके विधिपूर्वक षष्ठगृह पीठ के आचार्य पद पर आपश्री को प्रतिष्ठित किया गया।

वर्तमान ष0पी0धी0गो0 श्रीश्याममनोहरजी महाराजश्री भी प्रत्येक एकादशी एवं अन्य विशेष अवसरों पर अपने विद्धत्तापूर्ण प्रवचनों द्वारा वैष्णवजनों का मार्गदर्शन करते हैं। -आप श्री गो. श्री श्याममनोहरजी महाराज श्री के प्रवचनों की सी. डी. उपलब्ध है ।

1 श्री श्रीयमुनाष्टकम्

2. श्री स्फुरत्कृष्ण प्रेमामृतम (श्री सप्तश्लोकी)

3. श्री वल्लभाष्टकम्  

4. विवेकधैर्याश्रय निरूपम

5. सिद्धान्त रहस्य

6. श्री सर्वोत्तमस्त्रोत

7. कलकत्ता में हुये 6 दिवसीय सत्र में दिये गये सारगर्भित प्रवचन

8. श्री सुबोधिनी पर आधारित गोपीगीत

9. श्री सुबोधिनी पर आधारित भ्रमरगीत

आप अपने प्रभाव का उपयोग सुसंस्कारों की जागृति के लिए करते हैं। भगवान् की शरण लेकर निर्भय रहने का आदेश देते हैं। अपने घरों में नियमित रूप से भगवत् सेवा एवं भागवत धर्म का आचरण करने का कर्तव्यबोध कराते हैं। आपश्री का संदेश है कि ‘‘पुष्टिमार्ग में उत्तम दृष्टि होना अनिवार्य है एवं ज्ञानी का जो अन्तिम सोपान होता है वहीं से भक्त का प्रथम सोपान प्रारम्भ होता है। जब प्रभु कृपा करते हैं तभी उसकी प्रेरणा प्राप्त होती है उनके स्वरूप का भान होता है एवं भगवत् प्राप्ति होती है।“

संप्रति, इसी सभागार में वर्तमान महाराजश्री की कृपा से श्रीमुरलीधर पुस्तकालय एवं वाचनालय का उद्घाटन सं0 2061 श्रावण वदी एकादशी तदनुसार बुधवार दिनांक 11-8-2004 को पुरुषोत्तम मास में आपश्री के कर कमलों से किया गया जो इस समय वृहद्रूप से कार्य कर रहा है। इस पुस्तकालय में विभिन्न प्रकार के अनेकों साहित्य जैसे, भागवत् साहित्य, श्री सुबोधिनीजी, वेद, वेदान्त, पुराण, पुष्टिमार्गीय एवं संस्कृत साहित्य, कीर्तन, संगीत, आयुर्वेद, धर्मशास्त्र, ज्योतिष/वास्तुशास्त्र, तंत्र, बौद्ध दर्शन, सांख्य, मीमांसा, न्याय, कर्मकाण्ड, अनेकों उपनिषद एवं वल्लभ वेदान्त पर विशेष साहित्य उपलब्ध है। पुस्तकालय में विभिन्न भाषाओ के शब्दकोश एवं छात्राओं के शोध सम्बन्धी सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं।

सामाजिक क्षेत्र

ष0पी0धी0गो0 श्रीश्याममनोहरजी महाराजश्री निम्नलिखित संस्थाओं में भी अध्यक्ष, संरक्षक के रूप में जुड़े हुए हैं तथा उन संस्थाओं का यथा अवसर मार्गदर्शन करते रहते हैं-

1. संस्थापक अध्यक्ष पदेन – श्रीमुकुन्दगोपाल सेवा संस्थान, वाराणसी

2. धार्मिक प्रधान- श्रीमद्धल्लभ सिद्धान्त सेवा संस्थान, वाराणसी

3. अध्यक्ष- श्रीरामजी शास्त्री चेरिटेवल ट्रस्ट, मथुरा

4. सं0 अध्यक्ष पदेन- श्रीव्रज  भूषणलाल अतिथि सेवा चेरिटेवल ट्रस्ट, गोकुल

5. संस्थापक अध्यक्ष- श्रीवल्लभ वैष्णव चेरीटेवल ट्रस्ट, मुंबई

6. संरक्षक- भारत भारती परिषद (वाराणसी)

7. संरक्षक- श्री वल्लभ युवक परिषद (वाराणसी)

8. संरक्षक- भारत विकास परिषद (वाराणसी)

श्री प्रियेन्दु बावाश्री –

आपका प्राकट्य वि0सं0 2044 मिति मार्ग.कृ. 7 को जोधपुर में हुआ।

आपश्री के पिताश्री का नाम- षष्ठगृहाधिपति श्री श्री 108 श्रीश्याममनोहरजी महाराज (काशी) एवं आपश्री के माताश्री का नाम- अ.सौ. श्रीराधिका बहुजी है।

आपका अध्ययन (अध्यापन) आपश्री के पिताश्री श्याममनोहरजी महाराजश्री एवं षष्ठ पीठ के शास्त्रीजी डॉ0 श्रीगोपीवल्लभजी पाठक के द्वारा हुआ। आपने शास्त्री एवं आचार्य की शिक्षा काशी स्थित सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से ग्रहण की है। आप, श्री सन्मुख उत्कृष्ट मृदंगवादन और पदगान करते हैं।