श्रीगुसांईजी के पन्चम लालजी श्रीरघुनाथजी
श्रीरघुनाथजी का प्राकट्य वि0 सं0 1699 मि0 का0 शु0 12 बुधवार को अड़ैल में श्रीमहाप्रभुजी की निजगृह की बैठक में हुआ। श्रीरघुनाथजी का उपनयन वि0 सं0 1618 के लगभग गोकुल में हुआ। आपश्री का विवाह वि0 सं0 1626/27 के लगभग, गोकुल में हुआ एवं आपश्री के बहूजी का नाम जानकीजी है। आपश्री के कुल 6 संताने हुई- पांच पुत्र एवं एक कन्या। जिनके नाम इस प्रकार हैं-
(1) श्रीदेवकीनन्दनजी, प्रा0 वि0 सं0 1634, मि0 मार्ग0 शु0 7
(2) श्रीगोपालजी, प्रा0 वि0 सं0 1637, मि0 श्रा0 कृ0 6
(3) श्रीजयदेवजी, प्रा0 वि0 सं0 1638/1645, मि0 माघ0 शु0 12
(4) श्रीयशोदानन्दनजी, प्रा0 वि0 सं0 1648, मि0 चै0 शु0 3
(5) श्रीद्वारिकानाथजी, प्रा0 वि0 सं0 1650, मि0 भा0 शु0 12 एवं एक कन्या-श्रीयमुना बेटीजी
आपश्री के सेव्य स्वरूप श्रीगोकुलचन्द्रमाजी हैं जो आपश्री को बाँटे में प्राप्त हुए। ये स्वरूप वर्तमान में कामाँ (कामवन), राजस्थान में विराजमान हैं। आपश्री का लीला प्रवेश वि0 सं0 1660 के आस-पास माना जाता हैं। आपश्री की एक बैठक गोकुल में श्रीगोकुलचन्द्रमाजी के मन्दिर में हैं। आपश्री के लगभग 14 ग्रन्थ हैं-(1) नामरत्नः (2) वन्हि सुनुस्तवः (3) आराधनाख्यानः (4) गिरिधराष्टक (5) गोकुलेशाष्टक (6) अष्टपदी (7) कृष्णाष्टक (8) शयन आर्या (इस विषय में कुछ विद्वानों में मतभेद प्राप्त होते हैं) (9) विट्ठलेशाष्टक (10) भगवत्स्तोत्र (11) नाम चन्द्रिका (12) वल्लभाष्टक अर्थ (13) सर्वोत्तमस्तोत्र टीका (14) षोडश ग्रन्थों पर टीका। भाषा साहित्य में भी आपश्री के कुछ पद कीर्तन आदि प्राप्त होते हैं।
श्रीरघुनाथजी के बड़े पुत्र श्रीदेवकीनन्दनजी के वंश में श्रीद्वारिकेषजी, का जन्म वि0 सं0 1751, प्रसिद्ध वार्ता कार एवं कवि हुए। आपश्री भावात्मक वार्ता साहित्य के रचयिता होने से पुष्टि सम्प्रदाय में आप ‘श्रीद्वारिकेशजी भावनावारे’ के नामसे प्रख्यात हैं।
आपश्री की कई रचनांए है जिनमें कुछ मुख्य निम्नलिखित हैं-(1) श्रीनाथजी आदि सात स्वरूपन की भावना (2) उत्सव भावना (3) नित्यलीला (4) मूलपुरूष आदि मुख्य हैं।