अविकृत परिणाम
परिणाम दो प्रकार के होते हैं। प्रथम वह होता है जो परिणाम की दशा में अपने मूलस्वरूप से हट जाता है एवं पुनः अपने मूलस्वरूप को प्राप्त भी नहीं कर सकता। जैसे दुग्ध का परिणाम दही होता है। दुग्ध जब एक बार दही हो जाता है तो पुनः दुग्ध नहीं हो सकता। दूसरा वह होता है अविकृत परिणाम। जो परिणाम की दशा में भी अपने मूलस्वरूप गुण को नही छोड़ता। केवल रूपनाम से परिणमित होता है मूलस्वरूप से नही। जैसे – यथा स्वर्ण में से जब आभूषण निर्मित होते है तब उनके स्वरूप एवं नाम भिन्न-भिन्न हो जाते है, परन्तु जब उन्हे पुनः गला दिया जाता है अग्नि संयोग से तो वह पुनः स्वर्ण ही हो जाता है। इसी प्रकार जगत-ब्रहम का अविकृत परिणाम है। ब्रहम तो सदा सर्वदा निर्विकारी है।